
UTTARAKHAND LAND LAW
नए भू कानून के अनुसार हरिद्वार-उधम सिंह नगर को छोड़कर बाकी के सभी 11 जिलों में बाहरी लोग कृषि भूमि नहीं खरीद सकते.
देहरादून। उत्तराखंड के राज्यपाल ने (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (संशोधन) विधेयक, 2025 पर अपनी मुहर लगा दी है. राज्यपाल की मंजूरी के बाद उत्तराखंड में सशक्त भू कानून लागू हो गया है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक्स पर पोस्ट कर खुद इसकी जानकारी दी.
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक्स पर पोस्ट लिखा कि देवभूमि में भूमि प्रबंधन और भू-व्यवस्था एवं सुधार के लिए विधानसभा से पारित उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (संशोधन) विधेयक, 2025 पर राज्यपाल की मुहर लगने के साथ ही प्रदेश में सशक्त भू कानून लागू हो गया है.
उत्तराखंड का नया भू-कानून, जिसे उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (संशोधन) विधेयक, 2025 के रूप में 22 फरवरी 2025 को विधानसभा में पारित किया गया, राज्य में भूमि खरीद-फरोख्त और उपयोग को नियंत्रित करने के लिए लाया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य स्थानीय लोगों की जमीन और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना, भू-माफिया की गतिविधियों पर रोक लगाना, और राज्य की जनसांख्यिकी (डेमोग्राफी) को सुरक्षित रखना है। नीचे इस कानून के प्रमुख प्रावधानों का सारांश दिया गया है:
नए भू-कानून में प्रमुख प्रावधान:
बाहरी व्यक्तियों पर कृषि भूमि खरीद पर रोक:
- हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर को छोड़कर, शेष 11 जिलों में राज्य के बाहर के व्यक्ति कृषि और बागवानी (हॉर्टिकल्चर) के लिए जमीन नहीं खरीद सकेंगे।
- इन दो जिलों में भी कृषि या अध्ययन परियोजनाओं के लिए जमीन खरीदने हेतु शपथ पत्र देना होगा, और इसका उपयोग केवल निर्धारित उद्देश्य के लिए ही हो सकेगा।
आवासीय भूमि खरीद की सीमा:
- बाहरी व्यक्ति आवासीय उपयोग के लिए अधिकतम 250 वर्ग मीटर जमीन खरीद सकते हैं, लेकिन यह सीमा पूरे परिवार पर लागू है। परिवार के अन्य सदस्यों को अतिरिक्त जमीन खरीदने की अनुमति नहीं होगी।
- जमीन खरीदने से पहले सब-रजिस्ट्रार को शपथ पत्र देना होगा, जिसमें पुष्टि करनी होगी कि खरीदार या उनके परिवार ने पहले 250 वर्ग मीटर से अधिक जमीन नहीं खरीदी है।
जमीन के दुरुपयोग पर सख्ती:
- यदि खरीदी गई जमीन का उपयोग निर्धारित उद्देश्य (जैसे आवासीय, कृषि, या औद्योगिक) से अलग होता है, या बिना अनुमति बेची/हस्तांतरित की जाती है, तो वह जमीन सरकार में निहित हो जाएगी।
- नगर निकाय क्षेत्रों में भी जमीन का उपयोग केवल निर्धारित भू-उपयोग के अनुसार होगा।
निवेश के लिए भूमि खरीद:
- राज्य के बाहर के व्यक्ति निवेश (जैसे उद्योग) के लिए जमीन खरीद सकते हैं, लेकिन इसके लिए शासन स्तर से अनुमति लेनी होगी, न कि जिलाधिकारी से।
- पहले 12.5 एकड़ की खरीद सीमा को हटा दिया गया है, लेकिन उपयोग पर कड़ी निगरानी रहेगी।
भू-कानून उल्लंघन पर कार्रवाई:
- वर्तमान और नए कानून के उल्लंघन (जैसे 250 वर्ग मीटर से अधिक जमीन खरीदना या गलत उपयोग) पर सख्त कार्रवाई होगी। सरकार ने सभी जिलों से उल्लंघन के मामलों की रिपोर्ट मांगी है, और अब तक 140 से अधिक उल्लंघनकर्ताओं को नोटिस जारी किए गए हैं।
- तकनीक का उपयोग कर अनियमितताओं पर नजर रखी जाएगी।
नगर निकाय क्षेत्रों में छूट:
नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत, और छावनी परिषद क्षेत्रों में यह कानून लागू नहीं होगा। भविष्य में इन क्षेत्रों में शामिल होने वाले क्षेत्रों को भी छूट मिलेगी, जिसे कुछ लोग “बैक डोर एंट्री” का रास्ता मानते हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि यह कानून देवभूमि के मूल स्वरूप को बनाए रखने और भू-माफिया पर लगाम लगाने के लिए है। सरकार का कहना है कि यह हिमाचल प्रदेश के भू-कानून से भी सख्त है, और इससे स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा होगी।
जनता और विपक्ष की प्रतिक्रिया:
- कई स्थानीय लोग और कारोबारी, जैसे त्रिभुवन सिंह फर्त्याल, इसे “छलावा” मानते हैं, क्योंकि 250 वर्ग मीटर की सीमा पहले से थी, और हरिद्वार-ऊधम सिंह नगर को छूट देने से भूमाफिया सक्रिय रह सकते हैं।
- विपक्ष: कांग्रेस ने इसे प्रवर समिति को भेजने की मांग की, यह कहते हुए कि कानून में खामियां हैं और तराई की जमीनें खतरे में रहेंगी।
- सामाजिक संगठन: कुछ संगठन इसे अपर्याप्त मानते हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में बाहरी लोगों के लिए पूर्ण प्रतिबंध की मांग कर रहे हैं।
विवाद और आलोचना:
- हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर को छूट देने पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि ये क्षेत्र भूमि खरीद-फरोख्त के प्रमुख केंद्र हैं।
- नगर निकाय क्षेत्रों को कानून से बाहर रखने को “भूमाफिया के लिए रास्ता” माना जा रहा है।
- कुछ का मानना है कि कानून पुराने प्रावधानों को ही दोहराता है, और इसमें नया कुछ नहीं है।
निष्कर्ष: उत्तराखंड का नया भू-कानून बाहरी लोगों द्वारा जमीन खरीद पर कुछ हद तक प्रतिबंध लगाता है, लेकिन नगर निकाय क्षेत्रों और दो जिलों को छूट देने के कारण यह पूरी तरह सख्त नहीं माना जा रहा। सरकार इसे स्थानीय हितों और पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी बताती है, जबकि जनता और विपक्ष इसे और मजबूत करने की मांग कर रहे हैं।