शिक्षा विभाग में यह मामला 2022 में ही सामने आ गया था. जिसके बाद भी प्रकरण पर संबंधित शिक्षकों द्वारा कोई जवाब नहीं मिला.
देहरादून। उत्तराखंड शिक्षा विभाग में फर्जी प्रमाण पत्रों से नौकरी पाने वाले 51 शिक्षकों पर गाज गिरनी शुरू हो गई है.. शिक्षा विभाग ने राज्य के ऐसे 51 शिक्षकों को नोटिस जारी किया है, जिन पर दिव्यांग के फर्जी प्रमाण पत्र बनाकर नौकरी पाने का आरोप है. शासन ने खास तोर इसके लिए एक कमेटी भी गठित की है, जो की प्रमाण पत्रों के फर्जी रूप से तैयार होने और अपात्र लोगों को नौकरी दिए जाने का पूरा लेखा-जोखा तैयार करेगी.
विभाग ने इन सभी को शो-कॉज नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह मामला 23 नवंबर 2025 को सामने आया,
घटना का बैकग्राउंड
- कैसे हुआ फर्जीवाड़ा? इन शिक्षकों ने दिव्यांग आरक्षण कोटे का गलत फायदा उठाकर सहायक अध्यापक या अन्य पदों पर नियुक्ति प्राप्त की थी। आरोप है कि उन्होंने जाली या अमान्य दिव्यांग प्रमाणपत्र (डिसेबिलिटी सर्टिफिकेट) जमा किए थे, जो राज्य मेडिकल बोर्ड द्वारा जारी नहीं किए गए थे या जिनमें विकलांगता का प्रतिशत गलत बताया गया था।
- कब और कैसे पकड़ा गया? यह मामला 2022 से जुड़ा है, जब राज्य मेडिकल बोर्ड ने दिव्यांग प्रमाणपत्रों की पुनः जांच शुरू की। जांच के दौरान कई कर्मचारी जानबूझकर मेडिकल मूल्यांकन में अनुपस्थित रहे या उनके प्रमाणपत्रों में विसंगतियां पाई गईं। नेशनल फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड (उत्तराखंड शाखा) ने इस मुद्दे को उठाते हुए हाईकोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर की, जिसके बाद जांच तेज हुई।
विभाग की कार्रवाई
- शिक्षा विभाग ने तत्काल 51 संदिग्ध शिक्षकों को नोटिस जारी किए हैं। नोटिस में उनसे स्पष्टीकरण मांगा गया है कि वे फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर नौकरी कैसे हासिल कर पाए।
- अगर जवाब संतोषजनक नहीं मिला, तो इनकी सेवाएं समाप्त की जा सकती हैं, साथ ही कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है।
- यह कार्रवाई ऊधम सिंह नगर, देहरादून और अन्य जिलों में तैनात शिक्षकों पर केंद्रित है। विभाग ने स्पष्ट किया है कि पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सभी दस्तावेजों की विस्तृत जांच की जा रही है।
हाईकोर्ट का रुख
- नवंबर 2025 की सुनवाई: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 15 नवंबर 2025 को इस मामले में राज्य दिव्यांग आयुक्त को वर्चुअल सुनवाई के लिए हाजिर होने का निर्देश दिया। साथ ही, राज्य मेडिकल बोर्ड के निदेशक को नोटिस जारी किया गया।
- 19 नवंबर की अपडेट: कोर्ट ने एक हफ्ते में विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया। PIL में मांग की गई है कि सभी संदिग्ध प्रमाणपत्रों की स्वतंत्र जांच हो और दोषी कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
- कोर्ट ने जोर दिया कि दिव्यांग आरक्षण का दुरुपयोग असली दिव्यांगों के अधिकारों का हनन है, इसलिए तुरंत सुधारात्मक कदम उठाए जाएं।
संबंधित पुराने मामले और प्रभाव
- यह पहला मामला नहीं है। 2024 में 65 शिक्षकों को फर्जी दस्तावेजों (जैसे डिग्री या डोमिसाइल) के लिए बर्खास्त किया गया था। 2018 में भी 20+ शिक्षकों के फर्जी प्रमाणपत्र पकड़े गए थे।
- प्रभाव: इस घोटाले से शिक्षा विभाग की भर्ती प्रक्रिया पर सवाल उठे हैं। असली दिव्यांग उम्मीदवारों को आरक्षण से वंचित होना पड़ रहा है। साथ ही, विभाग अब सभी पुरानी भर्तियों की ऑडिट कराने की योजना बना रहा है।
- अधिकारियों के बयान: शिक्षा निदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “हम पारदर्शिता के लिए प्रतिबद्ध हैं। फर्जीवाड़े में लिप्त किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा।” हाईकोर्ट में पेश हुए निदेशक ने जांच जारी रखने का आश्वासन दिया।
निष्कर्ष और आगे की उम्मीदें
यह मामला उत्तराखंड में सरकारी भर्तियों में पारदर्शिता की कमी को उजागर करता है। विभाग ने वादा किया है कि जल्द ही सभी दोषियों पर कार्रवाई होगी, और भविष्य में डिजिटल वेरिफिकेशन सिस्टम लागू किया जाएगा। अगर आप इस मामले से जुड़े किसी विशिष्ट जिले या शिक्षक की जानकारी चाहें, तो अधिक डिटेल्स उपलब्ध करा सकते हैं।
