
UTTARAKHAND RIVER MAP
देहरादून। उत्तराखंड में फ्लैश फ्लड का खतरा उन क्षेत्रों में अधिक है जो हिमालयी नदियों के किनारे, उच्च ढलान वाले पहाड़ी इलाकों में, या ग्लेशियरों और मानसून की भारी बारिश के प्रभाव वाले क्षेत्रों में स्थित हैं। निम्नलिखित शहर और कस्बे फ्लैश फ्लड के प्रति संवेदनशील माने जाते हैं, जो भौगोलिक स्थिति, जलवायु परिवर्तन, और अनियोजित निर्माण के कारण जोखिम में हैं:
उत्तरकाशी और आसपास के कस्बे (जैसे धराली, हर्षिल, गंगोत्री)
उत्तरकाशी जिला हिमालय की गहराई में बसा है, जहां भागीरथी और खीर गंगा जैसी नदियां बहती हैं। हाल की घटनाएं, जैसे धराली में 5 अगस्त 2025 को बादल फटने से आई तबाही, इस क्षेत्र की संवेदनशीलता को दर्शाती हैं। गंगोत्री और हर्षिल जैसे तीर्थस्थल और पर्यटक क्षेत्रों में भारी बारिश और भूस्खलन के कारण फ्लैश फ्लड का खतरा बना रहता है।
चमोली (बदरीनाथ, जोशीमठ, और आसपास के क्षेत्र)
चमोली जिला भूस्खलन और फ्लैश फ्लड के लिए अत्यधिक संवेदनशील है, विशेष रूप से अलकनंदा और ऋषिगंगा नदियों के किनारे। ग्लेशियरों के पिघलने और मानसून की भारी बारिश के कारण यह क्षेत्र बार-बार प्रभावित होता है। 1970 में अलकनंदा नदी के जलस्तर में 15 मीटर की वृद्धि इसका उदाहरण है।
रुद्रप्रयाग (केदारनाथ और आसपास के कस्बे)
अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के संगम पर स्थित रुद्रप्रयाग मानसून के दौरान फ्लैश फ्लड और भूस्खलन के लिए संवेदनशील है। 2013 की केदारनाथ त्रासदी, जिसमें चौराबाड़ी झील के फटने से हजारों लोगों की जान गई, इस क्षेत्र के जोखिम को दर्शाती है।
पिथौरागढ़ (धारचूला और अन्य कस्बे)
पिथौरागढ़ में काली नदी और अन्य हिमालयी नदियों के किनारे बसे कस्बे फ्लैश फ्लड के लिए संवेदनशील हैं। जुलाई 2022 में धारचूला के पास बादल फटने से हुए नुकसान इसका उदाहरण हैं।
देहरादून (रिस्पना और बिंदाल नदियों के किनारे बस्तियां)
देहरादून में नदियों और नालों के किनारे बसी 129 मलिन बस्तियों में सवा लाख से अधिक लोग खतरे में हैं। अनियोजित निर्माण और नदी तटों पर अतिक्रमण के कारण फ्लैश फ्लड का जोखिम बढ़ गया है।
बागेश्वर और टिहरी
ये जिले भी भूस्खलन और फ्लैश फ्लड के लिए संवेदनशील हैं, क्योंकि इनके पास हिमालयी नदियां और अस्थिर ढलानें हैं। मानसून के दौरान भारी बारिश इन क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बढ़ाती है।
जोखिम के कारण:
- जलवायु परिवर्तन: ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना और अनियमित मानसून पैटर्न फ्लैश फ्लड को बढ़ावा दे रहे हैं। गंगोत्री ग्लेशियर पिछले 50 वर्षों में 1.5 किमी पीछे खिसक चुका है।
- अनियोजित निर्माण: नदियों के किनारे होटल, होमस्टे, और अन्य निर्माण फ्लैश फ्लड के प्रभाव को बढ़ाते हैं।
- भारी बारिश और बादल फटना: उत्तराखंड में मानसून के दौरान 10 सेंटीमीटर प्रति घंटे से अधिक बारिश बादल फटने की श्रेणी में आती है, जो फ्लैश फ्लड का कारण बनती है।
सुझाव:
- मौसम पूर्वानुमान में सुधार: उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मौसम रडार और सटीक पूर्वानुमान प्रणाली की आवश्यकता है।
- निर्माण नियंत्रण: नदी तटों पर अनियोजित निर्माण को रोकना और पुनर्वास योजनाओं को लागू करना जरूरी है।
- जागरूकता और तैयारी: स्थानीय लोगों को सीटी और अन्य अलर्ट सिस्टम के माध्यम से जागरूक करना और आपदा प्रबंधन को मजबूत करना।