
देहरादून। हिमालयी क्षेत्र, जो भारत, नेपाल, भूटान, चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों में फैला हुआ है, प्राकृतिक आपदाओं के लिए अत्यधिक संवेदनशील है। यह क्षेत्र भूगर्भीय रूप से युवा और अस्थिर है, जहां टेक्टोनिक गतिविधियां, जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप (जैसे अनियोजित विकास, हाइड्रोपावर परियोजनाएं और वनों की कटाई) आपदाओं की तीव्रता को बढ़ाते हैं। वैज्ञानिकों की विभिन्न रिपोर्टों (जैसे IPCC, ICIMOD, और हालिया अध्ययनों) में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों का पिघलना, भारी वर्षा, भूस्खलन और बाढ़ जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं। ये आपदाएं न केवल स्थानीय समुदायों को प्रभावित करती हैं, बल्कि नीचे बहने वाली नदियों (जैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र) के बेसिन में रहने वाले 24 करोड़ से अधिक लोगों को भी खतरे में डालती हैं।
नीचे प्रमुख वैज्ञानिक रिपोर्टों और अध्ययनों के आधार पर मुख्य निष्कर्षों को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है। ये रिपोर्टें हालिया घटनाओं (जैसे 2021 उत्तराखंड बाढ़, 2023 सिक्किम GLOF) को भी विश्लेषित करती हैं।
1. IPCC की चौथी मूल्यांकन रिपोर्ट (2007) और बाद की रिपोर्टें
- मुख्य निष्कर्ष: हिमालयी क्षेत्र में बाढ़ों की घटनाओं और तीव्रता में वृद्धि होने की चेतावनी दी गई है। इसका कारण मानसून के दौरान वर्षा में वृद्धि और ग्लेशियरों का पिघलना (ग्लेशियर रिट्रीट) है, जो वैश्विक तापमान वृद्धि से जुड़ा है। रिपोर्ट के अनुसार, हिमालय की नाजुक संरचना के कारण प्रति वर्ग किलोमीटर में कम से कम दो भूस्खलन के निशान पाए जाते हैं। इससे नीचे बहने वाले नदी बेसिनों में 13 करोड़ से अधिक लोगों की असुरक्षा बढ़ जाती है।
- प्रभाव: बाढ़, भूस्खलन और मलबा प्रवाह जैसी आपदाएं बढ़ेंगी। सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (CRRI) के वैज्ञानिकों ने पाटलगंगा घाटी (गढ़वाल) में भूस्खलन के जोखिम को ‘भयानक’ बताया है।
- सिफारिश: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए पारिस्थितिक संरक्षण और जोखिम मूल्यांकन पर जोर।
2. ICIMOD और अन्य अंतरराष्ट्रीय अध्ययन (2021-2025)
- मुख्य निष्कर्ष: हिमालयी ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना (पोलर क्षेत्रों के बाहर सबसे बड़ा हिमाच्छादित क्षेत्र) नई आपदाओं को जन्म दे रहा है। 2021 के उत्तराखंड फ्लैश फ्लड (चमोली) को ग्लेशियर से जुड़े खतरों (जैसे हिमस्खलन और बर्फ के गिरने) का उदाहरण बताया गया, जहां ग्लेशियर झीलों पर ध्यान केंद्रित होने से अन्य खतरे (जैसे भूस्खलन) नजरअंदाज हो गए। 2023 के सिक्किम GLOF (ग्लेशियर झील विस्फोट) में 147 लाख घन मीटर बर्फीली मोरेन का ढहना 20 मीटर ऊंची बाढ़ लहर पैदा कर 55 लोगों की मौत और 270 मिलियन घन मीटर तलछट को बहा ले गया। अध्ययन में कहा गया कि जलवायु परिवर्तन से पर्माफ्रॉस्ट (स्थायी जमी हुई मिट्टी) पिघल रही है, जो चट्टानों और बर्फ की अस्थिरता बढ़ा रही है।
- प्रभाव: हिमालय में 50,000 से अधिक ग्लेशियर हैं, लेकिन केवल 30 की ही निगरानी हो रही है। 2023-2025 के अध्ययनों में बताया गया कि आपदाओं की संख्या 2013-2022 में 68 तक पहुंच गई, जो भारत की कुल आपदाओं का 44% है। बाढ़ (132 घटनाएं), भूस्खलन (37) और भूकंप सबसे आम हैं।
- सिफारिश: ग्लेशियर निगरानी, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (EWS) और हाइड्रोपावर परियोजनाओं पर सख्त नियंत्रण। 2025 में लॉन्च हुए हिंदू कुश हिमालयन DRR हब ने क्षेत्रीय सहयोग पर जोर दिया, क्योंकि आपदाएं सीमाओं को पार करती हैं।
3. हालिया वैज्ञानिक अध्ययन (2023-2025)
- नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स (2024): उत्तराखंड के नैनीताल में 2021 की फ्लैश फ्लड का विश्लेषण किया गया। वायुमंडलीय कारक (जैसे एरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ, बादल मोटाई और वाष्पीकृत जल) और भौगोलिक ढलान ने बाढ़ को बढ़ावा दिया। हिमालय की ऊंची ढलानें बादल फटने, भूस्खलन और फ्लैश फ्लड से 300 से अधिक मौतें (2021 में) का कारण बनीं। जलवायु परिवर्तन से फ्लैश फ्लड की घटनाएं बढ़ रही हैं।
- डाउन टू अर्थ और NASA डेटा (2024): हिमालयी राज्य (जैसे उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम) 18% क्षेत्र होने पर 35% आपदाओं का सामना करते हैं। 1900-2022 में 240 प्रमुख आपदाएं, जिनमें 132 बाढ़। 2007-2017 में 1,121 भूस्खलन दर्ज। जलवायु परिवर्तन से वार्मिंग अन्य क्षेत्रों से तेज (5.2°C तक वृद्धि संभावित)।
- अर्थ्स फ्यूचर जर्नल (2023): हिमालय में मास मूवमेंट (हिमस्खलन, भूस्खलन) से प्रभावित सड़कें, नदियां और आबादी सबसे अधिक केंद्रीय हिमालय (नेपाल, उत्तराखंड) में। कराकोरम में इंफ्रास्ट्रक्चर सबसे जोखिम में।
- साइंस जर्नल (2025): 2023 सिक्किम GLOF को ‘हिमालयन त्सुनामी’ कहा, न कि बादल फटना। 2,400 से अधिक झीलें खतरे में; 80% हाइड्रोपावर क्षमता अभी अनुपयोगी, लेकिन परियोजनाएं जोखिम बढ़ा रही हैं।
- प्रभाव: मानवीय कारक (जैसे चार धाम परियोजना, सड़क निर्माण) आपदाओं को 20-30% बढ़ा रहे हैं। 2025 के मानसून में हिमाचल, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में भारी वर्षा से फ्लैश फ्लड और भूस्खलन हुए, जो वैज्ञानिक चेतावनियों (20-30 वर्ष पुरानी) की अनदेखी का परिणाम हैं।
- सिफारिश: रीयल-टाइम मॉनिटरिंग (सैटेलाइट, रडार), EIA (पर्यावरण प्रभाव आकलन) में हिमालय-विशिष्ट मानदंड, और स्थानीय समुदायों की भागीदारी।
आपदाओं के प्रमुख कारण (वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर)
कारण श्रेणी | विवरण | उदाहरण/प्रभाव |
---|---|---|
प्राकृतिक | युवा भूगर्भीय संरचना, टेक्टोनिक प्लेट टकराव, ग्लेशियर पिघलना। | GLOF, भूकंप (2,687 घटनाएं 2009-2021)। |
जलवायु परिवर्तन | तापमान वृद्धि (2°F से अधिक), अनियमित मानसून, पर्माफ्रॉस्ट पिघलना। | फ्लैश फ्लड बढ़ना (2021 नैनीताल), 650+ जोखिम वाली झीलें। |
मानवीय | अनियोजित विकास, हाइड्रोपावर डैम, वनों कटाई, पर्यटन। | 2023 सिक्किम: 1,200 MW डैम नष्ट; 25,999 भवन क्षतिग्रस्त। |
मानवीय गतिविधियां उत्तराखंड में आपदा के वैज्ञानिक कारण:
- अनियोजित विकास: चार धाम सड़क परियोजना, हाइड्रोपावर डैम, और अनियोजित शहरीकरण ने ढलानों को अस्थिर किया है। उदाहरण: 2021 चमोली बाढ़ में ऋषिगंगा और तपकेश्वर हाइड्रोपावर परियोजनाएं नष्ट हो गईं, क्योंकि डैम स्थलों का पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अपर्याप्त था।
- वनों की कटाई: वन कटाव से मिट्टी का कटाव और भूस्खलन बढ़ा है। 2007-2017 में उत्तराखंड में 1,121 भूस्खलन दर्ज किए गए।
- पर्यटन और बुनियादी ढांचा: अनियोजित पर्यटन और सड़क निर्माण ने प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मानवीय गतिविधियां आपदाओं की तीव्रता को 20-30% तक बढ़ा रही हैं।
ग्लेशियल झीलों का खतरा:
- उत्तराखंड में कई जोखिम वाली ग्लेशियल झीलें हैं, जिनकी निगरानी सीमित है। 2021 चमोली आपदा में ग्लेशियर झीलों पर ध्यान कम होने से अन्य खतरे (जैसे हिमस्खलन) नजरअंदाज हुए। वैज्ञानिकों ने 188 संवेदनशील झीलों की पहचान की है, जिनके लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (EWS) शुरू की गई है, लेकिन अभी यह अपर्याप्त है।
वायुमंडलीय और स्थानीय कारक:
भारी वर्षा, बादल फटना, और ढलानों की खड़ी संरचना उत्तराखंड में फ्लैश फ्लड और भूस्खलन को बढ़ावा देती है। 2021 में 300 से अधिक मौतें फ्लैश फ्लड और भूस्खलन से हुईं। डाउन टू अर्थ (2024) के अनुसार, उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्य भारत के 18% क्षेत्र में 35% आपदाओं का सामना करते हैं।
वैज्ञानिक रिपोर्टें स्पष्ट करती हैं कि हिमालयी आपदाएं अब केवल प्राकृतिक नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों से प्रेरित हो रही हैं। बिना तत्काल कार्रवाई (जैसे क्षेत्रीय सहयोग, EWS, और सतत विकास) के ये घटनाएं और बढ़ेंगी। भारत सरकार ने 188 संवेदनशील झीलों के लिए EWS शुरू किया है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि सीमा-पार डेटा शेयरिंग (चीन, नेपाल आदि के साथ) आवश्यक है। हिमालय को ‘थर्ड पोल’ मानते हुए, वैश्विक प्रयासों से ही इसकी रक्षा संभव है।