
देहरादून। उत्तराखंड में इन दिनों सियासी घमासान मचा हुआ है. जिसको लेकर विपक्ष ने सत्ता पक्ष के प्रबंधन तंत्र को ही कटघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया है. इसी बीच राजनीतिक गलियारों में सवाल उठ रहे हैं कि सरकार और संगठन का प्रबंधन तंत्र उत्तराखंड के सियासी प्रकरण को मैनेज करने में आखिर क्यों फेल हुआ? और इसके पीछे की वजह क्या है? सवाल ये भी उठाए जा रहे हैं कि समय रहते अगर सरकार के रणनीतिकार गंभीरता से इस पर ध्यान देते तो शायद उत्तराखंड में सियासी बवाल ना होता.
उत्तराखंड के राजनीतिक बवंडर के पीछे जहां एक ओर सत्ता और सत्ताधारी पार्टी के रणनीतिकारों का फेलियर बताया जा रहा है, वहीं, राजनीतिक पंडित भी इसके पीछे की कई वजह बता रहे हैं. सियासी जानकारों का मानना है कि समय रहते सरकार के मुखिया के स्तर और संगठन के मुख्य मुखिया के स्तर से डैमेज कंट्रोल कर लिया गया होता, तो शायद ये पूरा मामला पार्टी हाईकमान की दहलीज तक नहीं पहुंचता. ऐसे में जहां विपक्ष इसको मुद्दा बना रहा है, तो वहीं, सरकार और संगठन की फजीहत भी चर्चाओं का विषय बनी हुई है.
इस पूरे मामले पर राजनीतिक जानकार जय सिंह रावत ने कहा लगता है कि प्रेमचंद अग्रवाल के मामले में भाजपा और सरकार ने काफी देर कर दी है. जब यह मामला चर्चाओं में आया तभी डैमेज कंट्रोल शुरू कर दिया जाना चाहिए थे. काफी देर बाद प्रेमचंद अग्रवाल का इस्तीफा लिया गया. उससे पहले सरकार के मंत्री और संगठन की ओर से ही उनके पक्ष में बयान दिये जा रहे थे. जिसके चलते इस पूरे प्रकरण की वजह से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष, विधानसभा स्पीकर और सरकार की छवि काफी अधिक खराब हुई है. इसके अलावा प्रदेश में पहाड़ और मैदान की एक बड़ी खाई भी खोद दी गई है. इसके साथ ही विपक्ष को भी एक बड़ा मुद्दा मिल गया है.
मामले में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन महरा ने कहा इस पूरे मामले पर निश्चित ही सरकार और संगठन के प्रबंधन तंत्र का एक बड़ा फेल्योर है. जिस तरह की भाषा का प्रयोग प्रेमचंद अग्रवाल ने किया उसके बाद तुरंत ही उनका इस्तीफा हो जाना चाहिए था, लेकिन इस्तीफा देने से पहले जो प्रेमचंद अग्रवाल ने प्रेसवार्ता कर कहा वो भी बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण था, क्योंकि अगर वो इस बात को कहते कि उन्हें आत्मग्लानि हुई है, ऐसे में वो प्राश्चित करने के लिए इस्तीफा दे रहे हैं तो इस बयान से प्रेमचंद अग्रवाल का कद बढ़ता. कांग्रेस के नजर में उनकी इज्जत बढ़ती.
पूरे मामले पर कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने कहा 21 फरवरी को सदन के भीतर पहाड़वासियों को गाली दी गई. उसके बाद से ही हर एक घटना क्रम पर पहाड़वासियों की पैनी नजर है. प्रेमचंद अग्रवाल को ना ही सरकार और ना ही संगठन ने बर्खास्त किया. प्रेमचंद अग्रवाल ने अपनी स्वेच्छा से अपना इस्तीफा दिया है. लिहाजा, मामले में पूरा भाजपा नेतृत्व पूरी तरह से फेलियर साबित हुआ है. इस घाव की व्यापकता को आंकने में ये चूक गए. उन्होंने कहा अगर कोई पहाड़ वासियों को गाली दे रहा है तो ऐसे व्यक्ति को तत्काल बर्खास्त करना चाहिए, लेकिन जिस तरह से हीलाहवाली की गई. राजनीतिक नफा नुकसान तोड़ने की कोशिश की गई. उसे बहुत बड़ा नुकसान भाजपा को हुआ है. सरकार पहले ही रबर स्टंप के रूप में काम कर रही है.
वहीं, इस पूरे मामले पर भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं विधायक विनोद चमोली ने कहा कि विपक्ष हर हाल में मुद्दों को जिंदा रखकर उस पर राजनीति करना चाहता है. ऐसे में विपक्ष की मंशा स्पष्ट है कि वो भाजपा को कमजोर करने का प्रयास कर रही है. उन्होंने कहा विपक्ष को प्रदेश को मजबूत नहीं करना है बल्कि वो इसने अपनी राजनीति तलाश रहे हैं.
इस मामले पर दर्जाधारी राज्यमंत्री देवेंद्र भसीन ने कहा कांग्रेस की एक सोची समझी नीति है जिसके तहत अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोई कदम उठाते हैं तो विपक्ष इसका विरोध शुरू कर देती है. इसी तरह उत्तराखंड में भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जो निर्णय लेते हैं या कदम उठाते हैं वह प्रदेश के हित में होता है लेकिन कांग्रेस सिर्फ नकारात्मक भूमिका निभाते हुए इसका विरोध करती है. कांग्रेस के पास कोई दृष्टि नहीं है. यही वजह है कि वो सिर्फ एक लाइन पर चल रहे हैं.