
देहरादून। पुष्कर सिंह धामी सरकार ने भी 31 मार्च 2025 को बड़ा फैसला लेते हुए उत्तराखंड राज्य में कई जगहों के नाम बदल दिए. सीएम पुष्कर सिंह धामी के इस फैसले के बाद उत्तराखंड में एक नई बहस शुरू हो गई है. सत्ता और विपक्षी दल के राजनेताओं के लेकर राजनीतिक जानकर सीएम धामी के इस निर्णय को अपने चश्मे से देख रहे हैं. किसी ने जगहों का नाम बदले जाने का स्वागत किया, तो कोई इस निर्णय को बीजेपी का ‘नाटक’ बता रहा है. उत्तराखंड में नाम बदलने की इस पॉलिटिक्स के पीछे धामी सरकार की क्या मंशा है, उसी पर विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं.
31 मार्च देर शाम धामी सरकार की ओर से एक आदेश जारी हुआ, जिसके बाद हरिद्वार, नैनीताल, उधम सिंह नगर और देहरादून जिले में स्थित करीब 17 जगहों के नाम बदल दिए गए. सरकार ने जो नाम बदले हैं, वो या तो मुगल शासकों को नाम पर थे, या फिर विशेष समुदाय के लोगों के नाम पर थे. हालांकि, कुछ नाम ऐसे हैं जिन पर धामी सरकार की किरकिरी हो सकती है, जिसमें से एक नाम तो देहरादून का मियांवाला है.
मियांवाला का क्यों बदला? राज्य सरकार ने देहरादून के मियांवाला का नाम बदलकर रामजीवाला किया है. अब इस पर हरीश रावत ने सरकार पर तंज कसा है.
हरीश रावत, पूर्व सीएम उत्तराखंड – धामी सरकार को शायद पता नहीं कि देहरादून में जिस मियांवाला का नाम उन्होंने बदला है, वो उत्तराखंड की एक जाति है, जो राजपूत कहलाते हैं.
अभी नाम बदलने की क्या जरूरत पड़ी: अब सवाल ये खड़ा हो रहा है कि सरकार के जिन जगहों के नाम बदले हैं, वहां पर किसी भी तरह के नाम बदलने की मांग नहीं उठ रही थी. फिर सरकार ने अचानक से इस तरह का फैसला क्यों लिया? सरकार को किस मजबूरी या मंशा के साथ ये फैसला लेना पड़ा. हालांकि, इस बारे में खुद सीएम धामी का कहना यहीं है कि उन्होंने जनता की मांग के अनुरूप और देवभूमि की संस्कृति को देखते हुए ये फैसला लिया है. सीएम धामी का मानना है कि किसी भी जगह का नाम उन महापुरुषों के नाम पर होना चाहिए, जिन्होंने समाज के लिए कुछ किया है.
पहले भी कई जगहों के नाम बदल गए: ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में पहली बार किसी जगह का नाम बदला गया है, इससे पहले धामी सरकार ने ही चमोली जिले में स्थित जोशीमठ का नाम बदलकर ज्योतिर्मठ किया था. हालांकि तब किसी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ था. क्योंकि जोशीमठ का नाम बदलकर ज्योतिर्मठ किए जाने की मांग काफी समय से चल रही थी. इसके पहले एक बार उत्तराखंड का नाम भी बदला जा चुका है. उत्तराखंड का पुराना नाम उत्तराचंल था, जिसे बाद में उत्तराखंड किया गया था. लेकिन वर्तमान में ऐसा क्यों किया गया, इसके पीछे कोई ठोस वजह सामने नहीं आ रही है. क्योंकि जिन इलाकों का नाम बदला गया है, वो कोई प्रसिद्ध स्थान भी नहीं हैं.
चर्चाओं में रहने और पुराने मुद्दों से ध्यान भटकाने का इरादा तो नहीं: उत्तराखंड में इन दिनों त्रिवेंद्र सिंह रावत का खनन वाला बयान छाया हुआ है, जिसको ढाल बनाकर कांग्रेस भी बीजेपी और सीएम धाम को टारगेट कर रही है. उत्तराखंड की राजनीति पर अच्छी पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत मानते हैं कि शायद मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए धामी सरकार ने नाम बदलने की पॉलिटिक्स का इस्तेमाल किया हो.
जय सिंह रावत, वरिष्ठ पत्रकार – जिन कस्बों और शहरों के नाम बदले गए हैं, वो नाम बहुत पुराने हैं. अचानक से उन जगहों के नाम बदलने का मतलब कुछ समझ में नहीं आता है. हालांकि, यह काम ईद पर ही करना यह दर्शाता है कि धामी सरकार चर्चा में रहने के लिए यह सब काम कर रही है.
कांग्रेस ने बताया नाम बदलने का नाटक: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम हरीश रावत ने सीएम धामी के इस फैसले को बीजेपी के नाम बदलने का नाटक बताया है. हरीश रावत का कहना है कि बीजेपी ऐसा करके जनता का ध्यान अपनी सरकार की विफलताओं से भटकाना चाहती है. अगर नाम बदलने से गन्ना किसानों की आय बढ़ती है, तो वो भी इस फैसले का स्वागत करेंगे.
धामी सरकार पर कटाक्ष करते हुए हरीश रावत ने कहा कि, सरकार के 3 साल पूरे हो गए हैं और 3 सालों में तीन उपलब्धियां सरकार नहीं गिनवा सकती है, जबकि लोगों के कई हजार सवाल सरकार के लिए हैं. हरीश रावत ने कहा की इस वक्त धामी सरकार पर सवाल सिर्फ कांग्रेस नहीं बीजेपी भी उठा रही है. देहरादून से लेकर संसद तक ये बात उठ रही है की आखिरकार प्रदेश में ये कैसी लूट मची है?
कांग्रेस ने बदला था उत्तरांचल का नाम: कांग्रेस कार्यकाल में भी नाम बदलने को लेकर पहले खूब विवाद हुआ था. दरअसल केंद्र में जब कांग्रेस की सरकार थी, तो प्रदेश को उत्तराखंड का नाम दिया गया था, लेकिन बीजेपी सरकार आने के बाद इसका नाम बदलकर उत्तरांचल कर दिया था, लेकिन फिर बाद में कांग्रेस की सरकार आने के बाद साल 2007 में फिर से उत्तराखंड नाम कर दिया गया था.
कैसे बदले जाते हैं नाम: ये नाम परिवर्तन आमतौर पर राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित किए जाते हैं और केंद्रीय गृह मंत्रालय से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) प्राप्त करने के बाद लागू होते हैं. इन बदलावों का उद्देश्य अक्सर औपनिवेशिक या विदेशी प्रभाव वाले नामों को हटाकर स्थानीय संस्कृति और इतिहास से जुड़े नाम स्थापित करना होता है. फिलहाल सरकार का यही कहना है कि राज्य की मांग को देखते हुए ये फैसला लिया गया है.