हैदराबाद। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) की मदद से भारतीय वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड के शुरुआती दौर की एक असाधारण आकाशगंगा की खोज की है, जिसका नाम अलकनंदा रखा गया है। यह खोज आकाशगंगा निर्माण की पुरानी थ्योरी को चुनौती देती है और बताती है कि ब्रह्मांड जितना हम सोचते थे, उससे कहीं ज्यादा तेजी से विकसित हुआ। यह खोज दिसंबर 2025 में सामने आई, जब JWST के डेटा का विश्लेषण कर पुणे के नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स (NCRA-TIFR) के वैज्ञानिकों ने इसे पहचाना।

खोज के वैज्ञानिक
- वैज्ञानिक: यह खोज फुल-टाइम रिसर्चर राशि जैन (PhD शोधार्थी, राजस्थान के भरतपुर से) और उनके सुपरवाइजर योगेश वडाडेकर (वरिष्ठ खगोलशास्त्री) ने की। दोनों NCRA-TIFR, पुणे में काम करते हैं।
- कैसे हुई खोज?: JWST के इन्फ्रारेड कैमरों ने दूर की आकाशगंगाओं की कमजोर रोशनी को कैद किया। अलकनंदा को एबेल 2744 गैलेक्सी क्लस्टर के पास देखा गया, जहां गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग (gravitational lensing) ने इसकी रोशनी को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया। यह क्लस्टर एक प्राकृतिक ‘कोस्मिक टेलीस्कोप’ की तरह काम करता है, जिससे आकाशगंगा की स्पाइरल आर्म्स साफ दिखीं। JWST के 21 फिल्टर्स से इसके आयु, धूल, स्टेलर मास और स्टार-फॉर्मेशन हिस्ट्री का विश्लेषण किया गया।
- प्रकाशन: यह रिसर्च Astronomy & Astrophysics जर्नल में 10 नवंबर 2025 को प्रकाशित हुई।

अलकनंदा आकाशगंगा की विशेषताएं
अलकनंदा एक ग्रैंड-डिजाइन स्पाइरल गैलेक्सी है, जो हमारी मिल्की वे (आकाशगंगा) से आश्चर्यजनक रूप से मिलती-जुलती है। यहां मुख्य डिटेल्स हैं:
| विशेषता | विवरण |
|---|---|
| दूरी | पृथ्वी से लगभग 12 अरब प्रकाश-वर्ष दूर। |
| आयु (ब्रह्मांड की) | बिग बैंग के मात्र 1.5 अरब साल बाद अस्तित्व में (आज ब्रह्मांड 13.8 अरब साल पुराना है)। |
| आकार | व्यास लगभग 30,000 प्रकाश-वर्ष; दो स्पष्ट स्पाइरल आर्म्स और चमकीला सेंट्रल बल्ब। |
| स्टार फॉर्मेशन | प्रति वर्ष लगभग 30-60 सूर्य जितने नए सितारे बन रहे हैं (मिल्की वे से 20-30 गुना तेज)। स्पाइरल आर्म्स में ‘बीड्स-ऑन-ए-स्ट्रिंग’ पैटर्न से सक्रिय स्टार बर्थ साफ दिखता है। |
| स्टेलर मास | लगभग 10 अरब सूर्य जितना मास स्टार्स में। |
| नाम का अर्थ | हिमालय की नदी अलकनंदा के नाम पर, जो ‘आकाशगंगा’ (मिल्की वे) का हिंदी शब्द भी है। |

यह आकाशगंगा इतनी परिपक्व है कि इसके स्पाइरल आर्म्स स्थिर और सममित हैं, जबकि पुरानी थ्योरी कहती थी कि शुरुआती ब्रह्मांड में गैलेक्सियां अनियमित और अव्यवस्थित होतीं।
महत्व और प्रभाव
- थ्योरी को चुनौती: वैज्ञानिक मानते थे कि स्पाइरल गैलेक्सी को स्थिर आर्म्स बनाने में कम से कम 3 अरब साल लगते हैं। लेकिन अलकनंदा ने आधे समय (1.5 अरब साल) में यह कर दिखाया। यह सुझाव देता है कि शुरुआती ब्रह्मांड में गैस एक्यूमुलेशन तेज था, और डार्क मैटर हेलो में गैस जल्दी डिस्क में सेटल हो गई। इससे गैलेक्सी फॉर्मेशन मॉडल्स को रिवाइज करना पड़ेगा।
- भविष्य की स्टडी: अगला कदम JWST के स्पेक्ट्रोस्कोपिक इंस्ट्रूमेंट्स से स्टार्स और गैस की गति मापना है, ताकि समझा जा सके कि यह इतनी तेजी से कैसे बनी। वैज्ञानिक अब ऐसी और आकाशगंगाओं की तलाश कर रहे हैं।
- भारतीय योगदान: यह खोज भारत की बढ़ती खगोल विज्ञान क्षमता को हाइलाइट करती है। NCRA-TIFR जैसे संस्थान JWST जैसे अंतरराष्ट्रीय टेलीस्कोप्स से वैश्विक थ्योरी को आकार दे रहे हैं।
यह खोज ब्रह्मांड के ‘कॉस्मिक डॉन’ को नया रूप देती है, जहां जटिल संरचनाएं अपेक्षा से पहले उभरीं।
