
लैंटाना पौधा
देहरादून। उत्तराखंड के वनों और आरक्षित क्षेत्रों में अभिशाप बने लैंटाना पौधे इको सिस्टम को नुकसान पहुंचा रहे हैं. जिसके उन्मूलन के लिए समय-समय पर अभियान चलाया जाता है. वहीं तेजी से दोबारा पनपने वाले लैंटाना पौधे को खत्म करना चुनौती से कम नहीं है. उत्तराखंड में सबसे ज्यादा चिंता कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और राजाजी टाइगर रिजर्व में दिखाई दे रही है. यहां लैंटाना आरक्षित क्षेत्रों के ग्रासलैंड और वन्यजीवों के लिए खतरा बना हुआ है.
लैंटाना (Lantana camara) एक आक्रामक विदेशी झाड़ीदार पौधा है, जो उत्तराखंड के जंगलों, वनस्पतियों और वन्यजीवों के लिए गंभीर समस्या बन गया है। मूल रूप से दक्षिण अमेरिका से 1800 के दशक में सजावटी पौधे के रूप में भारत लाया गया, यह पौधा अपनी तेजी से फैलने की प्रवृत्ति और पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव के कारण उत्तराखंड में जैव विविधता के लिए खतरा बन गया है। नीचे इसकी समस्याओं और प्रभावों का विस्तृत विवरण दिया गया है:
1. वनस्पतियों पर प्रभाव:
- स्थानीय प्रजातियों का दमन: लैंटाना अन्य वनस्पतियों को पनपने से रोकता है क्योंकि यह पानी और पोषक तत्वों को तेजी से अवशोषित करता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता कम होती है। इसके आसपास घास, जड़ी-बूटियाँ, और अन्य पौधे नहीं उग पाते, जिससे जैव विविधता नष्ट होती है।
- जमीन को बंजर बनाना: लैंटाना की पत्तियों से अलीलोकेमिकल्स (जैसे टेरपेनॉयड) निकलते हैं, जो मिट्टी में मौजूद अन्य पौधों के अंकुरण को रोकते हैं। यह मिट्टी को बंजर बनाकर स्थानीय वनस्पतियों को खत्म कर देता है।
- घास के मैदानों का विनाश: उत्तराखंड के कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में लैंटाना ने घास के मैदानों पर कब्जा कर लिया है, जो शाकाहारी वन्यजीवों के लिए भोजन का प्रमुख स्रोत हैं।
2. वन्यजीवों पर प्रभाव:
- शाकाहारी वन्यजीवों के लिए भोजन की कमी: लैंटाना के पत्ते और फल विषैले होते हैं, जिसे हिरण, हाथी जैसे शाकाहारी जानवर नहीं खा सकते। घास के मैदानों के खत्म होने से इन जानवरों को भोजन की कमी हो रही है। उदाहरण के लिए, बालाघाट के कान्हा नेशनल पार्क में 2015 में लैंटाना खाने से 20 हिरणों की मौत हो गई थी।
- शिकारी जानवरों के लिए शिकार में कमी: घास के मैदानों के नष्ट होने से शाकाहारी जानवरों की संख्या और गतिविधि कम हो रही है, जिसका असर बाघ और तेंदुए जैसे शिकारी जानवरों पर पड़ता है। लैंटाना के घने झुरमुट शिकार के लिए छिपने के स्थानों को भी कम करते हैं।
- आवासीय क्षेत्र का संकुचन: लैंटाना के घने झुरमुट जानवरों की आवाजाही को बाधित करते हैं, जिससे जंगल उनके लिए रहने लायक नहीं रहते। यह विशेष रूप से कार्बेट टाइगर रिजर्व में देखा गया, जहाँ लैंटाना के कारण बाघों का संरक्षण मुश्किल हो रहा है।
3. पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव:
- जंगल में आग का खतरा: लैंटाना की सूखी झाड़ियाँ गर्मियों में आसानी से आग पकड़ लेती हैं, जिससे जंगल की आग की घटनाएँ बढ़ रही हैं। उदाहरण के लिए, 2017 में कर्नाटक के बांदीपुर नेशनल पार्क में लैंटाना के कारण 715 वर्ग किमी जंगल जल गया था।
- जैव विविधता का नुकसान: लैंटाना का फैलाव स्थानीय प्रजातियों को खत्म करता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ रहा है। यह जड़ी-बूटियों और अन्य पौधों की प्रजातियों को नष्ट करके जैव विविधता को कम करता है।
- मिट्टी की उर्वरता पर प्रभाव: लैंटाना मिट्टी से पोषक तत्वों को तेजी से सोख लेता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता कम होती है और अन्य पौधों के लिए विकास मुश्किल हो जाता है।
4. लैंटाना के तेजी से फैलने के कारण:
- आक्रामक प्रकृति: लैंटाना साल भर फूलता है और इसके बीज पक्षियों द्वारा फैलाए जाते हैं। इसके अलावा, यह जड़ों से भी फैलता है, जिसे रोकना मुश्किल है।
- अनुकूल जलवायु: उत्तराखंड का 25-30 डिग्री सेल्सियस तापमान और वर्षा लैंटाना के विकास के लिए आदर्श है।
- मानव हस्तक्षेप: ब्रिटिश काल में इसे सजावटी पौधे के रूप में लाया गया, लेकिन इसके अनियंत्रित प्रसार ने इसे समस्या बना दिया।
5. उन्मूलन के प्रयास:
- वन विभाग की पहल: उत्तराखंड में लैंटाना उन्मूलन अभियान चलाया जा रहा है, जिसमें 11,882.78 हेक्टेयर क्षेत्र से इसे हटाने की योजना है। इसके स्थान पर घास के मैदान विकसित किए जा रहे हैं।
- जापानी मियावाकी तकनीक: कालसी क्षेत्र में इस तकनीक से लैंटाना को हटाकर देशी प्रजातियों को रोपा गया, जो सफल रहा।
- ग्रामीणों को रोजगार: लैंटाना हटाने के लिए ग्रामीणों को रोजगार दिया जा रहा है, जैसे मध्य प्रदेश में प्रति मीट्रिक टन 1,200 रुपये दिए जाते हैं।
- चुनौतियाँ: बारिश के कारण उन्मूलन कार्य बाधित होता है, क्योंकि पर्याप्त नमी से लैंटाना और तेजी से बढ़ता है।
6. सकारात्मक उपयोग:
- लैंटाना की लकड़ियों और पत्तियों से अगरबत्ती, चूड़ियों के स्टैंड, हैंगर्स, और अन्य उपयोगी सामान बनाए जा सकते हैं, जिससे ग्रामीण महिलाओं को रोजगार मिल सकता है।
- मध्य प्रदेश में इसे सीमेंट प्लांट में ईंधन के रूप में उपयोग किया जा रहा है।
निष्कर्ष:
लैंटाना उत्तराखंड में जैव विविधता, वन्यजीवों के भोजन, और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है। इसके तेजी से प्रसार, विषैले गुण, और अन्य वनस्पतियों को नष्ट करने की प्रवृत्ति ने इसे “जंगलों का अभिशाप” बना दिया है। वन विभाग और स्थानीय समुदायों के प्रयासों के बावजूद, इसे पूरी तरह नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण है। दीर्घकालिक समाधान के लिए मियावाकी तकनीक, देशी प्रजातियों का रोपण, और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना आवश्यक है।