
GLACIER LAKE OUTBURST FLOOD
वाडिया इंस्टिट्यूट की रिसर्च में उत्तराखंड के हिमालय में ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड को लेकर हुआ खुलासा.
देहरादून। हिमालय में मौजूद ग्लेशियर और ग्लेशियर में बनी झीलें हमेशा से ही केंद्र और राज्य सरकारों के लिए एक बड़ी चुनौती रही हैं. साल 2013 में केदार घाटी में आई आपदा समेत अन्य आपदाएं इसका एक जीता जागता उदाहरण रही हैं. यही वजह है कि केंद्र सरकार ग्लेशियर झीलों की स्थिति जानने के लिए अध्ययन पर जोर दे रही है.
हिमालय में ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड फ्लड का खतरा: इसी क्रम में पिछले साल एनडीएमए ने हिमालय क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर झीलों पर अध्ययन किया था. वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने भी गलेशियर झीलों पर एक नया अध्ययन किया है, जिसमें कई नए चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं.
उत्तराखंड में ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) का खतरा हिमालयी क्षेत्र की भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों के कारण गंभीर चिंता का विषय है। ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन के चलते ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे ग्लेशियल झीलों की संख्या और आकार बढ़ रहा है। ये झीलें अचानक टूटने पर विनाशकारी बाढ़ का कारण बन सकती हैं, जैसा कि 2013 की केदारनाथ आपदा और 2021 की चमोली बाढ़ में देखा गया।

ग्लेशियल झीलों की स्थिति:
- उत्तराखंड में 1,290 से अधिक ग्लेशियल झीलें हैं, जिनमें से 13 को अति संवेदनशील माना गया है, विशेष रूप से चमोली और पिथौरागढ़ जिलों में (जैसे भिलंगना, वसुधारा, और चौराबाड़ी झीलें)।
- पिछले 13 वर्षों में इन झीलों का क्षेत्रफल 33.7% तक बढ़ा है, जिससे GLOF का जोखिम बढ़ गया है।
- भिलंगना झील, जो खतलिंग ग्लेशियर के पास 4,750 मीटर की ऊंचाई पर है, पिछले 47 वर्षों में 0.38 वर्ग किमी तक विस्तारित हुई है।
- खतरे के कारण:
- जलवायु परिवर्तन: ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बारिश की बढ़ती घटनाएं।
- मोरेन बांधों की कमजोरी: ग्लेशियल झीलें अक्सर मोरेन (मलबे और बर्फ से बने प्राकृतिक बांध) से घिरी होती हैं, जो कमजोर होने पर आसानी से टूट सकती हैं।
- भूकंपीय गतिविधियां और भूस्खलन: ये झीलों के टूटने को ट्रिगर कर सकते हैं।
- पिछली घटनाएं:
- निगरानी और उपाय:
- केंद्र और उत्तराखंड सरकार ने ग्लेशियल झीलों की निगरानी बढ़ा दी है। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी और NDMA सैटेलाइट और ग्राउंड स्टडी के जरिए जोखिम का आकलन कर रहे हैं।
- 13 में से 5 अति संवेदनशील झीलों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, और USDMA इनके लिए समाधान (जैसे झीलों को नियंत्रित रूप से पंचर करना) पर काम कर रहा है।
- अर्ली वॉर्निंग सिस्टम विकसित करने की जरूरत है, जो अभी तक प्रभावी नहीं है।
- जोखिम:
उत्तराखंड में ग्लेशियल झीलों का बढ़ता खतरा जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को दर्शाता है। सरकार और वैज्ञानिक संस्थानों को निगरानी, अर्ली वॉर्निंग सिस्टम, और आपदा प्रबंधन पर और अधिक निवेश करने की जरूरत है। स्थानीय समुदायों को जागरूक करके और सुरक्षात्मक उपायों (जैसे झीलों का नियंत्रित जल निकास) को लागू करके इस खतरे को कम किया जा सकता है।