
रुद्रप्रयाग। केदारनाथ यात्रा मार्ग में गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध का मुद्दा हाल ही में उत्तराखंड में एक विवादास्पद और राजनीतिक रूप से संवेदनशील विषय बनकर उभरा है। यह मुद्दा खासतौर पर केदारनाथ धाम की पवित्रता को बनाए रखने के नाम पर उठाया गया है, जिसे हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है।
बीजेपी विधायक की मांग:
- केदारनाथ से बीजेपी विधायक आशा नौटियाल ने गैर-हिंदुओं के केदारनाथ धाम और यात्रा मार्ग में प्रवेश पर रोक लगाने की मांग की है। उनका तर्क है कि कुछ गैर-हिंदू तत्व धाम की पवित्रता को भंग कर रहे हैं, जैसे मांस, मछली और शराब के व्यापार में लिप्त होकर।
- नौटियाल ने कहा कि हाल ही में प्रभारी मंत्री सौरभ बहुगुणा ने स्थानीय लोगों और व्यापारियों के साथ बैठक की थी, जिसमें यह शिकायत सामने आई कि गैर-हिंदू व्यक्ति धाम को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं।
- गौ रक्षा विभाग के राष्ट्रीय महामंत्री थानापति मणिमहेश गिरी और जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरी ने भी इस मांग का समर्थन किया है।
- स्थानीय शिकायतें:
- स्थानीय व्यापारियों और होटल व्यवसायियों ने शिकायत की है कि यात्रा मार्ग पर मांस और शराब का व्यापार हो रहा है, जिसमें मुख्य रूप से गैर-हिंदुओं की भूमिका बताई जा रही है।
- कुछ लोगों का मानना है कि गैर-हिंदुओं द्वारा रोजगार और व्यापार करने से श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच रही है।
- पूर्व सीएम हरीश रावत: रावत ने इस मांग को संकीर्ण मानसिकता का परिणाम बताया और कहा कि उत्तराखंड में सभी धर्मों के लोग सदियों से सह-अस्तित्व में रहते आए हैं। उन्होंने बीजेपी पर सनसनीखेज बयानबाजी का आरोप लगाया।
- देहरादून के शहर काजी मोहम्मद अहमद कासमी: उन्होंने कहा कि यदि यह निर्णय कानून के दायरे में हो, तो स्वीकार्य है, लेकिन किसी समुदाय को निशाना बनाना गलत होगा।
- सामाजिक और धार्मिक तर्क:
- समर्थकों का कहना है कि केदारनाथ एक पवित्र ज्योतिर्लिंग स्थल है, और इसकी धार्मिक परंपराओं का सख्ती से पालन होना चाहिए। उनका मानना है कि गैर-हिंदुओं का प्रवेश धाम की पवित्रता को प्रभावित करता है।
- विरोधियों का तर्क है कि चारधाम यात्रा मार्ग पर कई गैर-हिंदू, विशेषकर मुस्लिम समुदाय के लोग, व्यवसाय और सेवाएं प्रदान करते हैं, जो यात्रा को सुगम बनाते हैं। उन्हें प्रतिबंधित करना भेदभावपूर्ण और आर्थिक रूप से हानिकारक होगा।

- राजनीतिक संदर्भ:
- यह मुद्दा 30 अप्रैल, 2025 से शुरू होने वाली चारधाम यात्रा से पहले उठा है, जिसे कुछ लोग आगामी चुनावों से जोड़कर देख रहे हैं।
- कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रयास हो सकता है, जो बीजेपी की रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
- सामाजिक मीडिया और X पर प्रतिक्रियाएं:
- X पर कुछ उपयोगकर्ताओं ने इस मांग का समर्थन किया, जिसमें गैर-हिंदुओं को यात्रा मार्ग पर व्यापार और घोड़ा-खच्चर सेवाओं से प्रतिबंधित करने की बात कही गई।
- अन्य पोस्ट्स में इसे धाम की पवित्रता बचाने की पहल बताया गया, लेकिन कुछ ने इसे धार्मिक आधार पर भेदभाव के रूप में देखा।
- वर्तमान स्थिति:
- अभी तक गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर पूर्ण प्रतिबंध लागू नहीं हुआ है, लेकिन इस मुद्दे पर चर्चा और विचार-विमर्श जारी है।
- उत्तराखंड सरकार और प्रशासन ने इस संबंध में कोई आधिकारिक बयान या नीति स्पष्ट नहीं की है। हालांकि, स्थानीय स्तर पर ऐसे व्यक्तियों की पहचान करने की बात कही गई है, जो कथित तौर पर धाम की पवित्रता को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
- यह मुद्दा धार्मिक आस्था, सामाजिक समावेशिता, और राजनीतिक रणनीति के बीच एक जटिल बहस बन गया है, जिसका प्रभाव आगामी चारधाम यात्रा और राज्य की सामाजिक-राजनीतिक स्थिति पर पड़ सकता है।

केदारनाथ में गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध का मुद्दा धार्मिक संवेदनशीलता और सामाजिक समरसता के बीच टकराव को दर्शाता है। जहां एक पक्ष इसे पवित्रता की रक्षा का मामला मानता है, वहीं दूसरा पक्ष इसे भेदभावपूर्ण और राजनीति से प्रेरित कदम बताता है। इस मुद्दे का समाधान संतुलित और कानूनी दृष्टिकोण से करना होगा, ताकि धार्मिक भावनाओं का सम्मान हो और सामाजिक एकता भी बनी रहे।
प्रशासन का जवाब: उधर, ट्रेड यूनियन के इस बयान पर प्रशासन का भी जवाब आया है. उप जिलाधिकारी ऊखीमठ अनिल शुक्ला का कहना है कि ट्रेड यूनियन ने सामान ढुलान को लेकर अनुमति मांगी थी. साथ ही पत्र में यह भी कहा कि उनके लोग ही यात्रा में कार्य करेंगे. उन्हें बताया गया है कि वो अपने स्तर से जो कर रहे हैं, उसमें प्रशासन का कोई दखल नहीं है, लेकिन किसी भी दुकान या कंपनी ठेकेदार पर सामान ढुलान को लेकर दबाव नहीं बना सकते हैं. ये संविधान के खिलाफ है. ऐसा किया गया तो प्रशासन स्तर से कार्रवाही की जाएगी.