
अबीर तैयार करते कारीगर
देहरादून। उत्तर प्रदेश के प्रताप नगर का रहने वाला एक परिवार ऐसा भी है, जो पिछले 70 सालों से हर साल देहरादून आकर अबीर बनाने का काम करता है. यह परिवार जो अबीर बनाता है, वो न सिर्फ केमिकल मुक्त होता है. बल्कि नुकसानदेह भी नहीं होता है.
अबीर बनाने वाले कारीगर सत्य प्रकाश यादव पिछले 20 सालों से अबीर बनाने का काम कर रहे हैं. हर साल होली से करीब 15 दिन पहले देहरादून स्थित झंडा साहिब आ जाते हैं और यहीं से सामान खरीदकर अबीर बनाते हैं. होली त्योहार के कुछ दिनों बाद अपने घर को वापस लौट जाते हैं.
पिछले कुछ सालों से अबीर की खपत में कमी देखी जा रही है. क्योंकि, पहले 20 से 25 क्विंटल अबीर बनाते थे, लेकिन अब डिमांड के अनुसार सिर्फ 10 से 12 क्विंटल अबीर ही बनाते हैं. क्योंकि, अबीर की डिमांड पिछले कुछ सालों में घट गई है.

लोग कंपनियों के और पैकेट वाले अबीर को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं. जिसके चलते इन हैंडमेड अबीर की डिमांड घट रही है. जबकि, वो लोग जो अबीर बना रहे हैं, वो पूरी तरह से सुरक्षित और केमिकल मुक्त है. जिससे स्किन यानी त्वचा को कोई नुकसान नहीं होता है.
अबीर को बनाने में अरारोट और रंग की जरूरत होती है. ये दोनों चीजें ही खाने वाली होती हैं. ऐसे में इसके आंख में चले जाने या मुंह में जाने से कोई नुकसान नहीं होता है. साथ ही बताया कि वो जो भी अबीर बनाते हैं, उसको थोक रेट में यानी करीब 90 रुपए किलो में बेच देते हैं. जिसको बाद में फुटकर रेट में करीब 200 रुपए किलो में बेचा जाता है.