Kanwar Route Nameplate Row – कोर्ट ने तीन राज्य सरकारों को भेजा नोटिस
कोर्ट ने कहा कि दुकानदारों को पहचान बताने की जरूरत नहीं, दुकान मालिकों को नाम बताने की जरूरत नहीं है।
दुकानदारों को सिर्फ खाने के प्रकार बताने की जरूरत है मतलब यह कि दुकान पर सिर्फ लिखे होन की जरूरत है कि वहां मांसाहारी खाना मिल रहा है या शाकाहारी खाना।
कोर्ट ने इस मामले में अदालत ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है।
कांवड़ यात्रा मार्ग पर होटलों को अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को लेकर एक NGO द्वारा दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि “क्या यह एक प्रेस वक्तव्य (press statement) था, या सरकार ने औपचारिक आदेश था कि नाम मोबाईल नंबर प्रदर्शित किया जाना चाहिए”?
Kanwar Route Nameplate Row – इस पर याचिकाकर्ताओं के वकील ने जवाब दिया कि “यह आदेश स्वैच्छिक है, यानि कोई दुकानदार चाहे तो अपनी मर्जी के आधार पर नाम लगा सकता है या नहीं लगा सकता, लेकिन पुलिस सख्ती से लागू करवा रही है”।
कोर्ट में NGO एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स द्वारा याचिका दाखिल की गई थी! जस्टिस हृषिकेश राय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने जवाब दिया कि “पहले एक प्रेस नोट था पर पुलिस की सख्ती दिखाने के बाद लोगों में आक्रोश था और सरकार कहती है कि यह स्वैच्छिक है लेकिन सरकार इसे सख्ती से लागू कर रही है, याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह एक छद्म आदेश है।”
एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील सीयू सिंह ने कहा कि “अधिकांश लोग बहुत गरीब सब्जी और चाय की दुकान के मालिक हैं और इस तरह के आर्थिक बहिष्कार के अधीन होने पर उनकी आर्थिक मृत्यु हो जाएगी, आज्ञा का पालन नहीं करने पर दुकानदारों को बुलडोजर कार्रवाई का सामना करना पड़ा है।”
Kanwar Route Nameplate Row – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “हमें स्थिति को इस तरह से बयान नहीं करना चाहिए कि जमीन पर जो है, उसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाए, इन आदेशों में सुरक्षा और स्वच्छता के आयाम भी हैं।”
अभिषेक मनु सिंघवी ने आगे कहा कि ” कावंड मार्ग पर बहुत सारे शुद्ध शाकाहारी होटल रेस्टोरेन्ट हैं जो हिंदुओं द्वारा चलाए जाते हैं और उनमें मुस्लिम कर्मचारी भी हो सकते हैं, क्या अब ये कहा जाय कि मैं वहां जाकर नहीं खाऊंगा क्योंकि खाना किसी न किसी तरह से मुस्लिमों या दलितों द्वारा छुआ जाता है? आदेश मे “स्वेच्छा से” (इच्छा से) कहा गया है लेकिन स्वेच्छा कहां है?
अंतरिम रोक के बाद अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की 26 जुलाई को सुनवाई होगी।