कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोटियाल
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बोले- मंत्री विधायक भी अपनी संपत्ति सार्वजनिक करें, बीजेपी बोली- ये रूटीन प्रक्रिया है.
देहरादून। उत्तराखंड सरकार ने दिसंबर 2025 में एक आदेश जारी किया है, जिसके तहत राज्य के सभी सरकारी विभागों, उपक्रमों और निगमों के अधिकारियों व कर्मचारियों को 15 दिसंबर 2025 तक अपनी चल-अचल संपत्ति का पूरा ब्यौरा (विवरण) कार्मिक विभाग को जमा करना अनिवार्य है। इसमें नियुक्ति के समय की संपत्ति के साथ-साथ वर्तमान संपत्ति और परिवार के सदस्यों (पति/पत्नी, आश्रित बच्चों, माता-पिता आदि) की संपत्ति का विवरण भी शामिल है।
यह आदेश उत्तराखंड हाई कोर्ट के निर्देशों पर आधारित है। कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति के मामलों की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी कि कई कर्मचारी परिवार की संपत्ति का खुलासा नहीं करते, जबकि उत्तराखंड सरकारी सेवक आचरण नियमावली-2002 के तहत यह अनिवार्य है। कोर्ट ने इसे सख्ती से लागू करने के निर्देश दिए थे।
क्या है पूरी खबर?
- यह नियम पहले से मौजूद है, लेकिन हाई कोर्ट के दबाव के बाद इसे सख्ती से लागू किया जा रहा है।
- कार्मिक सचिव शैलेश बगौली ने सभी विभागाध्यक्षों को परिपत्र जारी कर इसकी अनुपालना सुनिश्चित करने को कहा है।
- ब्यौरा न देने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है।

गणेश गोदियाल ने कहा ये सरकार की कर्मचारियों को डराने की कोशिश: कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोटियाल का कहना है कि- यह उत्तराखंड में इस समय एक ज्वलंत प्रश्न है, जहां पर विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सरकार कर्मचारी पर नकेल कसी जा रही है. संपत्ति का डर दिखाकर कर्मचारियों को यह दिखाने की कोशिश कर रही है, कि आने वाले चुनाव में यदि भारतीय जनता पार्टी का साथ नहीं दिया, तो उनके साथ क्या होगा. यह अपने आप बेहद अफसोस जनक बात है कि सरकार कर्मचारियों को तो अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करने को बोल रही है, लेकिन उसको इस बात का होश नहीं है कि कई मंत्री हैं, जिन पर आय से अधिक संपत्ति का आरोप है. सरकार उनकी संपति के बारे में क्यों कुछ नहीं बोल रही है. उन्हें क्यों मंत्रिमंडल में रखा हुआ है.
गोदियाल ने मंत्रियों, विधायकों की भी संपत्ति सार्वजनिक करने की मांग की: कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष का कहना है कि सरकार इस वक्त चुनाव से ठीक पहले कर्मचारियों को डराने का काम कर रही है. ताकि कर्मचारी डर कर या तो चुप रहें या फिर उनकी राजनीतिक विचारधारा को सपोर्ट करें. उन्होंने कहा कि यह सरकार की राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है. यह सरकार के राजनीतिक दबाव का खेल है. उन्होंने कहा कि सरकार के मंत्रीगण और विधायकों को पहले अपनी संपति को सार्वजनिक करना चाहिए, उसके बाद सबके लिए लागू करें.

वहीं दूसरी तरफ सत्ता पक्ष (भारतीय जनता पार्टी) के वरिष्ठ प्रवक्ता और विधायक विनोद चमोली का कहना है कि- कर्मचारी सेवा नियमावली के अनुसार कर्मचारियों को हर साल अपनी संपत्ति का ब्यौरा देना होता है. यह व्यवस्था पहले से ही बनी हुई है. इसमें कुछ भी नया नहीं है. जानकारी लेने वाले भी अधिकारी कर्मचारी हैं और देने वाले भी वही लोग हैं. जब यह कार्य ठीक से नहीं हो रहा है तो रिमांडर के रूप में दोबारा से आदेश जारी हुआ है.
संपत्ति का ब्यौरा नहीं देने वालों पर सख्त कार्रवाई के पक्ष में हैं विनोद चमोली: चमोली ने कहा कि इसका सख्ती से पालन करना चाहिए. कुछ और प्रतिबंध भी लगाए जाने चाहिए. जैसे कि यदि कोई अधिकारी या कर्मचारी संपत्ति का ब्यौरा नहीं देता है, तो उसके सभी प्रमोशन और इंक्रीमेंट रोक देने चाहिए. विनोद चमोली ने कहा कि सिस्टम में भ्रष्टाचार को कम करने के लिए इस तरह के कदम जरूरी हैं. वहीं इसके अलावा विधायकों और मंत्रियों की संपत्ति को लेकर उन्होंने कहा कि विधायक और मंत्री जो भी चुनाव में जाते हैं, वह चुनाव लड़ते हुए अपने संपत्ति को सार्वजनिक करते हैं. इसकी अधिकारियों और कर्मचारियों से तुलना नहीं करनी चाहिए.
