नैनीताल। बदरीनाथ धाम से जुड़ा यह विवाद सितंबर 2024 से चल रहा है मुख्य रूप से धार्मिक परंपराओं में कथित हस्तक्षेप और बदलाव को लेकर है। विवाद का केंद्र बिंदु बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) द्वारा पुजारियों की भर्ती प्रक्रिया में प्रस्तावित बदलाव को लेकर है।
- मुख्य मुद्दा: स्थानीय डिमरी समाज (बदरीनाथ क्षेत्र के पारंपरिक हक-हकूकधारियों में से एक) का आरोप है कि बीकेटीसी ने पुजारियों की सीधी भर्ती (डायरेक्ट रिक्रूटमेंट) का प्रस्ताव पारित किया है, जो सदियों पुरानी धार्मिक परंपराओं का उल्लंघन करता है। डिमरी समाज के अनुसार, पुजारियों की नियुक्ति हमेशा से परंपरागत तरीके से (जैसे वंशानुगत या समुदाय-आधारित) होती रही है, और यह बदलाव आस्था पर “छेड़छाड़” (tampering) है। उन्होंने बीकेटीसी अध्यक्ष अजेंद्र अजय पर भी आरोप लगाया कि उन्होंने सदस्यों को विश्वास में लिए बिना यह प्रस्ताव पास किया।
- विरोध का रूप: डिमरी समाज ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखा, विरोध प्रदर्शन किए, और परंपराओं को बरकरार रखने की मांग की। समाज के प्रवक्ता ने कहा कि इससे करोड़ों हिंदुओं की आस्था प्रभावित होगी। दूसरी ओर, बीकेटीसी का कहना है कि यह बदलाव धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप है और बोर्ड बैठक में पारित हुआ है।
यह विवाद बदरीनाथ धाम की प्राचीन परंपराओं (जैसे रावल की नियुक्ति, जो आदि शंकराचार्य द्वारा शुरू की गई केरल के नंबूदरी ब्राह्मणों से होती है) से जुड़ा है, जहां कोई भी बदलाव संवेदनशील माना जाता है। इसके अलावा, अगस्त 2025 में एक अन्य संबंधित विवाद भी उभरा, जहां मास्टर प्लान के तहत पौराणिक धार्मिक शिलाओं (ancient religious rocks) पर कथित छेड़छाड़ को लेकर हक-हकूकधारियों ने सिर मुंडवाकर विरोध जताया। उनका कहना था कि यह पुनर्निर्माण कार्य धार्मिक महत्व की शिलाओं को नुकसान पहुंचा रहा है।
हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार और बीकेटीसी से क्या जवाब मांगा?
उत्तराखंड हाईकोर्ट (नैनीताल) ने इस विवाद पर सीधे कोई नया आदेश (सितंबर 2025 तक) जारी नहीं किया है, लेकिन बदरीनाथ धाम की परंपराओं और प्रबंधन से जुड़े पुराने मामलों में अदालत सक्रिय रही है। हाल के संदर्भ में:
- मुख्य संबंधित मामला (2022): हाईकोर्ट ने ब्रिटिश काल के 1939 के “श्री बद्रीनाथ मंदिर एक्ट” को “हिंदू विरोधी” बताते हुए संशोधन की मांग वाली जनहित याचिका पर उत्तराखंड सरकार, बीकेटीसी और अन्य पक्षों से 8 हफ्तों में जवाब मांगा था। याचिका में कहा गया कि यह एक्ट मंदिर प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ाता है, जो हिंदू परंपराओं के खिलाफ है। अदालत ने इसे धार्मिक स्वायत्तता से जोड़कर देखा।
- अन्य हालिया हस्तक्षेप:
- फरवरी 2025 में, हाईकोर्ट ने बदरीनाथ में एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) से भागीरथी नदी प्रदूषण के मामले में पेयजल सचिव को 3 सदस्यीय जांच समिति गठित करने का निर्देश दिया। हालांकि यह परंपरा से सीधे जुड़ा नहीं, लेकिन मंदिर क्षेत्र के पुनर्विकास से संबंधित है।
- सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2025 में चंडी देवी मंदिर (हरिद्वार) प्रबंधन विवाद में उत्तराखंड सरकार से जवाब मांगा, जहां हाईकोर्ट के आदेश पर बीकेटीसी को नियंत्रण सौंपा गया था। यह बदरीनाथ जैसी ही समिति-आधारित प्रबंधन प्रणाली को चुनौती देता है।
यदि विवाद बढ़ा, तो हाईकोर्ट जनहित याचिका के जरिए सरकार और बीकेटीसी से परंपराओं की रक्षा पर विस्तृत जवाब मांग सकता है। वर्तमान में (सितंबर 2025), डिमरी समाज की शिकायत पर कोई नया कोर्ट ऑर्डर रिपोर्ट नहीं हुआ, लेकिन स्थानीय स्तर पर विरोध जारी है।
